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Showing posts from February, 2018

जानिए कैसे बना देता है शनि एक आम व्यक्ति को राजनेता।

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भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र में शनि ग्रह को पंच तारा ग्रहों में न्याय कारक ग्रह का माना गया है। राजनीति में शनि ग्रह का महत्वपूर्ण योगदान है।वर्तमान समय में लोग शनि का नाम सुनते ही घबरा जाते हैं | और अपने हर प्रकार के कार्यों में खुद के सोचने से विघ्न उत्पन्न कर लेते हैं। क्योंकि  मन में एक ही बात चलती रहती है की शनि जन्मकुंडली में कहीं बुरा प्रभाव तो नहीं दे रहा | मानव जीवन में शनि का प्रभाव बुरा ही नहीं अपितु शुभ भी होता है |  शनि ग्रह अन्य सभी ग्रहों से भी अच्छा फल देता है जो की जातक को गरीबी से उठा कर एक उच्च पद तक पहुंचा देता है |  शनि का राजनीती से बहुत बड़ा सम्बन्ध है शनि को वक्ता ग्रह ( अधिक बोलने वाला ) भी माना गया है। राजनैतिक क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए वाचाल  शक्ति का होना आवश्यक है जो की शनि प्रदान करता है। यदि शनि का हमारे जीवन में एक शुभ प्रभाव है तो शनि हमको उचाईयों तक पहुंचा देता है |  शनि महाराज को काल पुरुष का दण्डाधिकारी कहा गया है | सदैव कर्मक्षेत्र पर शनि ग्रह का विशेष प्रभाव रहता है। शनि ग्रह अत्यधिक धनवान वाले व्यक्ति को भी कर्म से जोड़े रखता है और व्यक्

जाने क्या है ज्योतिष शास्त्र और कैसे करता है यह आपके जीवन को प्रभावित।

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प्राचीन वैदिक काल से चली आ रही अखंड भारतीय ज्योतिषशास्त्र विद्या पूरे विश्व भू धरोवर मे आगे बढ़ती जा रही भारतीय अखंड वैदिक ज्योतिष विध्या वर्तमान समय में हर व्यक्ति से परिचित व हृदयों में विश्वास बनाये बैठी है ऐसी यह अखंड ज्योतिष विद्या समुद्र की गहराइयों से भी बढ़ कर एक मिशाल की तरह अडर-अमर है। ज्योतिष शास्त्र की गहराइयों को भली-भांति जानना मुश्किल ही नहीं अपितु नामुनकिन है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। विश्व विख्यात ज्योतिषचार्य इन्दु प्रकाश जी के सामान्य शब्दों में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या है जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्या‍दि का निश्चय किया जाता है। छः प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त करता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठान यज्ञ के उचित काल का निर्धारण  करना होता है |  यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र, ऋतु, अयन आदि इन सब का मालूम नहीं होता। ज्यो

आओ जाने आपकी जन्मकुंडली के अनुसार आपकी दाम्पत्या से जुड़ी समस्याओं के समाधान को। 

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वैदिक ज्योतिष के अनुसार पंच तारा ग्रहों में शुक्र ग्रह का विशेष महत्वपूर्ण स्थान है। शुक्र ग्रह मानव जीवन के सम्पूर्ण भौतिक सुखों को अपने अंदर समेटे हुये मान वता के भौतिक सुखों का निर्णय करता है शुक्र ग्रह सांसारिक मानव जाति कों मनोरंजन , कला - संगीत , सौंदर्य , प्रेम वासना और सांसारिक सुख-सुविधाओं के संसाधनों से जोड़े रखता है।   धर्म ग्रंथों में शुक्र ग्रह को शुक्राचार्य के नाम से दैत्यों के गुरु का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। मानव जीवन के भौतिक संसाधनों से जुड़ी समस्याओं के समाधान या मृत अवस्था तक पहुंचे व्यक्ति को जीवनदान देने में शुक्र ग्रह ही अपने अंदर सामर्थ्य रखता है। देखा जाय तो जहाँ कुबेर के देव ब्रह्स्पति को धन-लक्ष्मी का कारक ग्रह माना जाता है। ठीक इसी प्रकार धन-लक्ष्मी के भोग की शक्ति शुक्र ग्रह में समाहित है । जहाँ भोग का नाम आ जाता है वहीं भौतिक सुख स्वतह ही जुड़ जाता है इस लिये भौतिक सुखों का स्वामी शुक्र ग्रह हर जातक के जीवन में विशेष महत्व रखता है। बात करते हैं आज दाम्पत्या जीवन से जुड़ रही समस्याओं की- भारतीय फलित ज्योतिष में स्त्री तत्व से जुड़े शुक्र ग्रह को

जानिये ज्योतिषशास्त्र के अनुसार क्यों आती है व्यवसाय में बाधायेँ ।

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प्राचीन काल से चली आ रही रीति से व्यक्ति सदैव दो रास्तों पर चलता आ रहा है वह अपनी योग्यताओं और क्षमताओं के अनुसार अपनी आजीविका के साधन को चुनता रहता है कभी वह अपने खुद के व्यवसाय के पीछे दौड़ता है तो कभी वह नौकरी करने के लिए घर से दूर चला जाता है। परन्तु फिर भी मन में सोचता रहता है की काश  मेरा अपना काम यानि व्यवसाय होता तो आराम से अपनी आजीविका को घर बैठे चला लेता। धीरे-धीरे समाज में आगे बढ़ते हुए एक दिन वह बिना किसी के राय के सोचे समझे वह उत्साह पूर्वक अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर लेता है। और अपने जीवन काल में अजीवाका चलाने के लिए आगे बढ्ने लगता है परन्तु इसके बावजूद भी कई बार उसे अपने अनुकूल या लाभदायक व्यवसाय में परिवर्तन करना पड़ता है। इसके कई कारण हैं परन्तु बात करते हैं ज्योतिष शास्त्र द्वारा व्यवसाय के बार-बार परिवर्तन के और उनसे जुड़ रही बाधाओं की। भारतीय ज्योतिषशास्त्र को एक प्रत्यक्ष शास्त्र माना गया है जो व्यक्ति के जन्म से पूर्व व मृत्यु के बाद तक का जीवन काल को बताने में दृढ़ संकल्पित है। यदि कोई भी व्यक्ति ज्योतिषशास्त्र के द्वारा निर्मित अपनी जन्मकुंडली के अनुसार अपने व्य

जानिए जन्मकुंडली के द्वारा रोगों से जुड़ी जनकारी।

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पूरे विश्व पटल मे   विख्यात भारतीय अखंड ज्योतिष विध्या वर्तमान समय में हर व्यक्ति से परिचित व हृदयों में विश्वास बनाये बैठी है। भारतीय अखण्ड ज्योतिष विद्या व आयुर्वेद ये दोनों ही वेदों के मुख्य अंग हैं जहाँ आयुर्वेद रोगों के उपचार के लिए पूर्ण सक्षम है तो वहीँ दूसरी ओर ज्योतिषशास्त्र मानव जीवन में उत्पन्न होने वाले रोगों की पूर्व जानकारी देने में प्रवीण है। यदि जातक की जन्मकुंडली में रोग के कारणों की सही जानकारी होती है तो उपचार भी सही एवं सुचारु रूप से किया जा सकता है तथा रोगी व्यक्ति रोग मुक्त हो सकता है |  जैसे आकाशीय वृतों में स्थित राशियों एवं नक्षत्रों का अधिकार मानव शरीर के विभिन्न अंगो पर रहता है ठीक उसी प्रकार हमारे भू-मंडल के सभी ग्रह मानव शरीर के सभी अंगो पर भी पूर्ण अधिकार बनाये रखते हैं |   कालपुरुष के अनुसार द्वादश (12) राशियों को जन्मकुंडली के द्वादश (12) भाव के नाम से जाना जाता है। इन द्वादश भावों के द्वारा मानव शरीर का निर्माण होता है । जातक की जन्मकुंडली के द्वदाश भाव में बैठे शुभ- अशुभ ग्रह व राशियों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। विशेष रूप से जन